Tuesday 16 April 2024

सुशील भोले को जनकवि मरहा सम्मान

सुशील भोले जनकवि बिसंभर यादव 'मरहा' सम्मान' से सम्मानित
    रायपुर. साहित्य एवं पत्रकारिता के साथ ही छत्तीसगढ़ की पारंपरिक संस्कृति के उन्नयन में अविस्मरणीय योगदान के लिए राजधानी रायपुर के वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार एवं संस्कृति मर्मज्ञ सुशील भोले को जनकवि बिसंभर यादव 'मरहा' सम्मान 2024 से सम्मानित किया गया. 
    माँ कल्याणी शीतला मंदिर मरौदा टैंक रिसाली भिलाई द्वारा विगत बारह वर्षों से चैत्र नवरात्रि के अवसर पर षष्ठमी तिथि को प्रतिवर्ष यह प्रतिष्ठित सम्मान छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले व्यक्ति को प्रदान किया जाता है. इसी श्रृंखला में इस वर्ष सुशील भोले को प्रतिष्ठित बिसंभर यादव मरहा सम्मान से सम्मानित किया गया.
    अंचल के प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. परदेशी राम वर्मा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे. उन्होंने इस अवसर पर अपने उद्बोधन में बिसंभर यादव 'मरहा' को स्मरण करते हुए कहा कि मरहा जी जनकवि तो थे ही साथ ही वे महाकवि भी थे. वे बड़े बड़े कवि सम्मेलन के मंच के साथ ही गाँव गाँव में आयोजित होने वाले रामायण कार्यक्रम के मंचों पर भी अपनी कविता की प्रस्तुति देते थे और उसके माध्यम से जनजागरण का कार्य करते थे. मरहा जी कोई पूंजीपति या धन्नासेठ नहीं थे, उसके बावजूद उनके नाम पर प्रतिवर्ष सम्मान समारोह आयोजित करने के लिए मैं माँ कल्याणी शीतला मंदिर समिति को हृदय से बधाई देता हूँ.
   'मरहा' सम्मान से इस वर्ष सम्मानित होने वाले साहित्यकार सुशील भोले ने मरहा जी को स्मरण करते हुए कहा कि वे जब छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन कार्यक्रम के सिलसिले में 'चंदैनी गोंदा' के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख के ग्राम बघेरा स्थित निवास पर गये थे, तब दाऊ जी ने ही पहली बार बिसंभर यादव मरहा जी से उनका परिचय कराया था. उसके पश्चात तो मरहा जी के साथ विभिन्न कार्यक्रमों में नियमित रूप से मुलाकात होती थी. उन्होंने कहा कि मरहा जी की कविता जितनी सहज और सरल होती थी, वे स्वयं भी उतने ही सरल और मयारुक व्यक्ति थे. उनके साथ 
 कविता पाठ करने का अनेकों बार अवसर मिला. उन्होंने मरहा जी स्मृति में प्रतिवर्ष सम्मान समारोह आयोजित करने के लिए माँ कल्याणी शीतला मंदिर के सदस्यों को साधुवाद दिया.
    इस अवसर पर कवि बलराम चंद्राकर के संचालन में भव्य कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया, जिसमें विरेंद्र तिवारी, गायत्री श्रीवास, मनोज श्रीवास्तव, पूरन जायसवाल, राजेश चौहान तथा लोकेश मानिकपुरी सहित स्थानीय कवियों ने देर रात तक काव्य पाठ कर उपस्थित जनसमुदाय को कविता रस से सराबोर किया.

Monday 15 April 2024

विजय मिश्रा अउ झंगलू-मंगलू

वरिष्ठ पत्रकार विजय मिश्रा जी हमार ठीहा म पधारे रिहिन. ए बेरा म उन अपन हालेच म छप के आए किताब 'गोठ झंगलू-मंगलू के' भेंट करिन.
   छत्तीसगढ़ राज्य बने के आरो बछर 2000 म जनाए ले धरत रिहिसे, ठउका उही बेरा म अक्टूबर 2000 ले उन दैनिक अग्रदूत म छत्तीसगढ़ी भाखा म समसामयिक विषय मन ऊपर हास्य-व्यंग्य के शैली म क्षणिका लिखे के शुरू करिन, जे ह अग्रदूत के पहला पेज म सरलग छपय. 
   ठउका इहिच बेरा म जे दिन छत्तीसगढ़ राज्य बने के घोषणा होइस, उहिच दिन 1 नवंबर 2000 ले टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी घलो दैनिक अग्रदूत म ही छत्तीसगढ़ी भाखा म सरलग संपादकीय लिखे के शुरू करिन.
   छत्तीसगढ़ी भाखा के बढ़वार अउ प्रोत्साहन खातिर ए ह दैनिक अग्रदूत के जबर बुता रहिस. एक हिन्दी के दैनिक अखबार म छत्तीसगढ़ी म सरलग कॉलम संग संपादकीय के छपई. ए जबर बुता ल जब कभू छत्तीसगढ़ी भाखा के विकास के इतिहास लिखे जाही, त वोमा विशेष रूप ले उल्लेखित करे जाही.
   ए ह संयोग के बात आय के मोरो अखबार लाईन के शुरुआत ह दैनिक अग्रदूत ले ही होय हे. मोर जिनगी के पहला कविता अउ कहानी के प्रकाशन घलो दैनिक अग्रदूत म ही होय हे.
   आज जब भाई विजय मिश्रा जी ह अपन सरलग लिखे कॉलम के किताब रूप ल मोर घर म आ के भेंट करिन, त मोला गजबे निक लागीस संग म अपन वो जुन्ना दिन के सुरता घलो आगे. 
    विजय मिश्रा जी ल उंकर ए किताब 'गोठ झंगलू-मंगलू के' खातिर गाड़ा गाड़ा बधाई संग शुभकामना हे.
-सुशील भोले

Sunday 7 April 2024

मित्र मिलन में स्मरण हो आया फिर छात्र जीवन

आर.डी.तिवारी मित्र मिलन में फिर स्मरण हो आया हमारा छात्र जीवन
    साठ वर्ष से ऊपर के लोग जब मिलते हैं, तो बेटा-बहू, रिटायर पेंशन और विभिन्न बीमारियों से होते हुए घर का बंटवारा और भाई भाई की लड़ाई तक पहुँच जाते हैं. अक्सर इस वर्ग के लोगों की चर्चा का विषय ऐसा ही कुछ होता है, लेकिन हम आर. डी. तिवारी स्कूल के छात्र लगभग पैतालीस वर्ष के अंतराल के पश्चात् एक साथ मिले तो फिर से उसी स्कूली जीवन की याद में खो गये.
   जैसा कि मुझे लग ही रहा था, कि इतने वर्षों के बाद मिल रहे बाल सखाओं में से कुछ को तो शायद पहचान ही नहीं पाऊंगा और हुआ भी ऐसा ही. हम जब उस समय पढ़ रहे थे, तो हमारी कक्षा में लगभग 38 छात्र थे. रविवार 7 अप्रैल को जब चंगोरा भाठा स्थित अभिनंदन पैलेस में मिले तो कुल 23 मित्र ही उपस्थित हो पाए. वहाँ ज्ञात हुआ कि कुछ मित्र तो अब इस दुनिया में ही नहीं रहे और कुछ किसी कारण से आ नही पाए.
   वहाँ उपस्थित मित्रों में से तीन को पहचानने में मुझे थोड़ा समय लगा. एक जिसे देवीदीन कहकर परिचित कराया जा रहा था, मुझे बिल्कुल भी याद नहीं आ रहा था. उसका भारी भरकम शरीर.. लगता था कहीं का धन्नासेठ हमारे सामने आकर बैठ गया है. 
   तब त्रिलोचन में मुझे बताया- अबे.. इसको हम लोग चकरा नहीं कहते थे. 'चकरा' शब्द मेरे मष्तिष्क पर कौंधा.. तभी स्मरण हो आया कि यह तो वही है, जब हम लोग फुटबॉल खेलते थे, तो यह शख्स फुटबॉल को आउट लाईन के किनारे किनारे लेकर भागता था. बीच मैदान में कभी खेलता ही नहीं था.
   दूसरा मित्र जिसने अपना नाम झंगलुराम ढीमर बताया. मैं इसे भी नहीं पहचान पाया, तब उसी ने बताया- भैया हम लोग साथ में वॉलीबॉल नहीं खेलते थे. तब मुझे धीरे धीरे समझ में आया कि हम पढ़ाई करने के साथ ही वॉलीबॉल भी साथ में खेलते थे.
   तीसरा मित्र जिसे मैं पहचान नहीं पाया, उसका नाम है- राजू महावादी. महावादी सरनेम सुनकर मुझे साधना महावादी का स्मरण हो आया, जिसे हम लोग टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा लिखित नाटक 'गंवइहा' में गायिका रूप में गाना गवाए थे. तब राजू ने बताया कि साधना उसकी चचेरी बहन है, और हम लोग हांडीपारा में टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी के घर के सामने ही रहते थे. तब मैं राजू महावादी को भी पहचान पाया.
   वर्ष 1978-79 में पढ़कर निकले हमारे मित्रों में से कुछ तो अब सेवानिवृत्त हो गये हैं. ज्ञानेश शर्मा छत्तीसगढ़ योग आयोग के अध्यक्ष पद को सुशोभित कर चुके हैं. नरेंद्र बंछोर एंटी करप्शन ब्यूरो के डीएसपी पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. डॉ. ध्रुव कुमार पाण्डेय महाविद्यालय के प्राध्यापक पद से तो अशोक शर्मा बैंक अधिकारी के पद से. 
    ऐसे ही शत्रुहन यादव आरडीए से, राजू शर्मा और मनोज सोनी नगर निगम से. हरीश अवधिया और दीपक ब्राहा शिक्षा विभाग से. लेकिन प्यारेलाल सेन अभी जे.आर.दानी में व्याख्याता के पद पर तो डॉ. अशोक शर्मा छत्तीसगढ़ महाविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं. इसी तरह योगेन्द्र यदु भी शासकीय सेवा में सक्रिय हैं.
   त्रिलोचन सिंह, गगन पंजवानी, मुश्ताक अहमद और प्रधान सिंह होरा, लीलाधर महोबिया, जीतेन्द्र अग्रवाल, नंदकिशोर श्रीवास अपने अपने पुराने व्यवसाय में ही मगन हैं.
   आमतौर पर यह माना जाता है कि किसी भी व्यक्ति का साठ वर्ष से ऊपर का जीवन बोनस का जीवन होता है, इसलिए इस बोनस के जीवन को हम सभी को हंसते हुए सक्रिय रहकर व्यतीत करना चाहिए. इसी बात को ध्यान में रखकर हम सभी मित्रों ने निर्णय लिया कि इस तरह का मिलन कार्यक्रम अब नियमित रूप से किया करेंगे. वर्ष में कम से कम दो बार दीपावली और होली मिलन के बहाने तो जरूर मिलेंगे.
-सुशील वर्मा भोले

Friday 5 April 2024

जब पैतालीस वर्ष बाद मिलेंगे स्कूल के मित्रों से...

* कैसा लगेगा अपने बाल सखाओं से पैतालीस वर्ष बाद मिलकर? 
* आर. डी.तिवारी फ्रेंड्स ग्रुप का होली मिलन 7 को.. 
    मैं इस कल्पना से ही रोमांचित हूँ कि मेरे हाईस्कूल के मित्रों के साथ पैतालीस वर्ष बाद मिलकर कितना भावविभोर महसूस करूँगा.. मुझे कैसा महसूस होगा? 
    उन मित्रों के साथ मिलकर, जिनके साथ पढ़ते हुए हमारी मूंछें भी ठीक से नहीं निकल पाईं थीं, अब जब डाढ़ी मूंछ और सिर के सारे बाल सफेद हो गये हैं, किसी किसी के बाल तो झड़ भी गये हैं, ऐसे में हम उन्हें पहचान पाएंगे भी या नहीं? 
   वर्ष 1978-79 में पुराना मेट्रिक पास कर हम सब अलग अलग कॉलेज और अन्य संस्थानों में अपनी अपनी रुचि और घर की परिस्थितियों के मुताबिक पढ़ने या काम करने चले गये थे. इस बीच कभी कभार दो चार मित्रों के साथ मुलाकात भी हो जाती थी. कभी कभी तो दूर से ही दुआ सलाम की औपचारिकता मात्र हो पाती थी, तो कुछ मित्रों के साथ दो चार बातें भी हो जाती थीं.
   मुझे स्मरण हो रहा है, सबसे ज्यादा मुलाकात मेरी त्रिलोचन सिंह के साथ होती थी. मैं रजबंधा मैदान, रायपुर स्थित दैनिक छत्तीसगढ़ प्रेस में सहायक संपादक था, इसलिए प्रेस कार्यालय से दैनिक भास्कर होते हुए जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के मुख्य मार्ग से होते हुए घर आता जाता था. यहीं पर त्रिलोचन अपने टैक्सी के व्यवसाय के सिलसिले में मिल जाता था. मुझे देख लेता तो चिल्लाता था- अबे सुशील.. आना बे.. चाय पीते हैं. फिर हम केंद्रीय सहकारी बैंक के सामने वाले चाय ठेला में खड़े होकर चाय पीते थे.
    इसके बाद मनोज सोनी के साथ भी मेरी काफी मुलाकात होती थी. तब मनोज भाई नगर निगम रायपुर के संस्कृति विभाग में कार्यरत थे, इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल की जयंती एवं पुण्यतिथि के कार्यक्रमों की व्यवस्था की जिम्मेदारी निगम की ओर से मनोज को ही दी जाती थी. हम लोग खूबचंद बघेल वाले कार्यक्रम में आयोजक मंडल में रहते थे, इसलिए वहाँ जाते और कार्यक्रम में भागीदारी निभाते थे. इसी दरमियान मनोज भाई से मुलाकात भी होती थी और साथ में बैठकर गप्पें भी लड़ाते थे.
   शत्रुहन यादव के साथ भी उसके आमापारा वाली दुकान में एक दो बार मुलाकात हुई, साथ बैठकर चाय भी पीए. प्यारेलाल सेन के साथ रास्ते चलते कई बार मुलाकात हुई, बातें भी होती थी. इसी तरह राजू दुबे के साथ लिली चौक के पान ठेला पर दुआ सलाम हो जाता था. दीपक ब्राहा के साथ रायपुर से मांढर वाले लोकल ट्रेन में जब वह स्कूल जा रहा था, तो मैं भी उसी ट्रेन से अपने गाँव नगरगांव जा रहा था, तब उसने बताया था कि वह मांढर हाई स्कूल में ही शिक्षक है.
    हरीश अवधिया नगरी सिहावा के एक कवि और कलाकार मित्र नरेंद्र प्रजापति के साथ मेरे प्रेस पर आए थे, जब मैं छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' का प्रकाशन संपादन कर रहा था. उस समय हरीश ने बताया था कि वह नगरी में ही शिक्षक है.
    ज्ञानेश शर्मा के साथ तो कई बार मुलाकात हुई. ज्ञानेश राजनीति के चक्कर में इधर उधर आना जाना करता था, मैं भी छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन और छत्तीसगढ़ी भाषा संस्कृति के कार्यक्रमों में जाता था, इसलिए मुलाकात हो जाती थी. नरेंद्र बंछोर के साथ भी एक दो बार मुलाकात हुई लेकिन बात नहीं हो पाई. लीलाधर पंसारी/तंबोली के साथ तो कभी ठलहा समय में बैठ भी लिया करता था , एकाद बार फिल्म भी देखे थे. एकाद बार रशीद मोहम्मद के साथ भी मुलाकात हुई थी, शायद रशीद भाई अब इस दुनिया में नहीं हैं.
   मुझे स्मरण नहीं आ रहा है, कि इन सब मित्रों के अलावा और किन किन मित्रों के साथ आर. डी. तिवारी से पढ़कर निकलने के पश्चात मुलाकात हुई? 
    खैर, अब जब पैतालीस वर्ष बाद रविवार 7 अप्रैल को अभिनंदन पैलेस चंगोराभाठा, रायपुर में सभी मित्रों के साथ पुनः मिलने का संजोग बना है, तब यह सोचता हूँ कि मैं उनमें से कितनों को एक नज़र में ही पहचान पाऊंगा? क्योंकि इन पैतालीस वर्षों में आधे से भी ज्यादा मित्रों को तो हम देखे भी नहीं हैं.
    खैर... जैसा भी हो बालसखाओं से बूढ़ापे के आॅंगन में मिलना रोमांचकारी तो होगा ही और साथ ही अविस्मरणीय भी.
-सुशील वर्मा भोले

Monday 1 April 2024

कोंदा भैरा के गोठ-17

कोंदा भैरा के गोठ-17

-हमर छत्तीसगढ़ के मयारुक संगीतकार रहे स्व. खुमान लाल साव जी के जनम बछर ह कोनो जगा 1929 लिखाय रहिथे, त कोनो जगा 1930 लिखाय रहिथे, तेकर कारण ल जानथस जी भैरा.
   -कोन जनी भई.. फेर अतेक बड़ मनखे के जनम बछर म अइसन अलहन कइसे हो सकथे जी कोंदा? 
   -ए ह थोकन लापरवाही अउ थोकन अनाड़ी पन के सेती आय.
   -अच्छा... अइसे? 
   -हव.. असल म खुमान साव जी के जनम 5 सितम्बर 1929 आय, फेर जब स्कूल म दाखिला कराय बर उंकर सियान ह घर के पहाटिया ल वोकर संग म स्कूल भेजिन, त उनला चेताय रिहिन के 5 सितम्बर 1929 लिखवाबे कहिके.
   -हाँ त बने ल बने चेताइस.
  -हव.. फेर पहाटिया घर ले स्कूल के जावत ले 'उनतीस' के 'उन' ल भुलागे अउ सिरिफ 'तीस' भर ल लिखवा दिस. अइसे किसम स्कूल के दाखिला म खुमान साव जी के जनम बछर 1930 लिखागे, जेन अब सबो जगा के सरकारी रिकॉर्ड म चलत हे.
   -भारी अलकर हे भई.. अरे भई.. कागज म लिख के दे दिए रहितीस, या फेर सियान ल पहाटिया ल स्कूल भेजे के बलदा खुदे जाय रहितीस त अइसन नइ होए रहितीस.
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-काली राजधानी म प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाड़ी मनके सम्मान होइस हे जी भैरा... वोमा के कतकों झन गोल्ड मेडल जीतइया मन बतावत रिहिन हें, के उनला अपन जिनगी चलाय बर छोटे मोटे मजदूरी करे बर लागथे.. कोनो कोनो तो काहत रिहिन हें, के उनला रायपुर तक आए बर अपन संगी मन ले पइसा उधार लेना परिस हे.
   -अइसन सबो क्षेत्र के प्रतिभा मन संग देखे म आथे जी कोंदा.. मैं ह कला अउ साहित्य क्षेत्र के अइसने कतकों अद्भुत प्रतिभा मनला देखे हौं, जेकर मन जगा अइसने मंच म जाए खातिर न तो मोटर गाड़ी के टिकट खातिर पइसा राहय न पहिरे बर बने गतर के कपड़ा लत्ता.
   -ए ह न सिरिफ सरकार खातिर सोचे-गुने के बात आय भलुक सबो मानव समाज खातिर घलोक आय.
   -सही आय संगी.. सिरिफ पुरस्कार बॉंट दे भर म हमर मन के कर्तव्य पूरा नइ हो जावय.. जरूरी हे अइसन मन के सम्मान जनक जीवकोपार्जन खातिर चेत करे जाना चाही.
   -सही आय जी.. सम्मानित कर के सिरिफ इनला प्रोत्साहित करे जा सकथे, सम्मान जनक जीवन नइ दिए जा सकय.. सरकार ल अइसन मनला नौकरी आदि म विशेष अवसर देना चाही.
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-हमर इहाँ कतकों जगा के परंपरा मनला देख-सुन के ताज्जुब लागथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. अब हमरे परोसी गाँव मोहदा ल देख ले.. इहाँ होली के रतिहा महादेव के मंदिर म जब्बर मेला भराथे.. हजारों के संख्या म लोगन आने-आने देश राज ले सकलाथें. इहाँ होली ल जलाथें घलो त रतिहा 12 बजे के बाद, मेला झरे के नेंग होय के बाद.
   -हाँ.. ए रायपुर ले बिलासपुर रद्दा के मोहदा गाँव के बात ल तो महूं सुने हौं.. उहाँ जाए के अउ तरिया पार के मोहदेश्वर महादेव के दर्शन करे के सौभाग्य मिले हे.
    -जे मन सावन महीना म मनौती माने रहिथें ना.. जब उंकर मनोकामना पूरा हो जाथे, वो मन इहाँ होली के रतिहा आके महादेव के पूजा करथें.. अब तो ए दिन इहाँ जबर मेला भराथे.. हाँ.. फेर एक बात हे.. महादेव के पूजा करे बर सकलाय दूसर गाँव के लोगन मन ऊपर ए गाँव वाले मन कोनो किसम के रंग-गुलाल नइ लगावंय.
   -बने बात आय.. जे मन उहाँ महादेव के पूजा करे के उद्देश्य ले जाए रहिथें, उंकर ऊपर होली के रंग नइ डारना चाही.
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-हमर गाँव म ए बछर के घर म जंवारा बोवत हें जी भैरा? 
   -कोन जनी जी कोंदा, अभी तो मंडल पारा भर म सुनाय हे.. अउ बस्ती डहार ले शीतला म तो बोवाबेच करथे.
   -जतका जादा जगा जंवारा बोवाथे, वतके जादा गद बोलथे न गाँव ह? 
   -हव जी ए बात तो हे.. रतिहा ह माता जी सेवा करे अउ जस गाये म कइसे पहाथे तेकरो गम नइ मिलय.. नौ दिन ले नम्मी तक तिहार बरोबर जनाथे.
    -फेर अब तो कोनो कोनो मेर नवा चलागन देखे म आवत हे जी.. लोगन आठे के हूम-जग करवा के उहिच दिन ले या फेर नम्मी के बिहनिया जंवारा सरोय के नेंग कर देथें.
   -ए ह बने बात नोहय संगी.. जंवारा सरोय के नेंग ल दसमीं के ही करना चाही, इही हमर पुरखौती परंपरा आय. 
   -भांठा वाले महराज ह तो नम्मी के चल जाथे काहत रिहिसे जी.
   -आने गाँव ले आके इहाँ बसुंद्रा बसे मनखे ह हमर गाँव के परंपरा ल काय जानही.. इहाँ के जुन्ना बइगा ल पूछबे वो ह बताही तोला हमर असली परंपरा ल.. ए बाहिर ले आए पेट-पोंसवा मनखे मन तो इहाँ के परंपरा ल भरमाए अउ भटकाए के छोड़ अउ कुछू नइ करत हें.. वो बसुंद्रा महराज ल पूछबे- आज तक एको झन वोकर लरा-जरा मन कभू अपन घर म जंवारा बो के नौ दिन ले माता जी के सेवा करे होहीं का? अउ खुद वो मन अइसन नइ करे होहीं त फेर एकर ले जुड़े परंपरा ल जानहीं कइसे?
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-अब के लइका मन के नवा-नवा चरित्तर के सेती आजकाल कोनो मेर 'कॉंके पानी' घलो पीये बर नइ मिलय जी भैरा.
    -सिरतोन ताय जी कोंदा.. न बपरी छेवरहीन ल अउ वोकर संग म छट्ठी म पहुंचे हमर असन मयारुक पहुना मनला.
   -हव भई.. उरई के जड़ ल माटी के मरकी म खूब चुरो के बनाए जाय कॉंके पानी ल एमा सुवाद के मुताबिक गुड़ अउ तिलि म बघार के सब नता-गोता मनला घलो दिए जाय.
   -हव सही आय.. छेवरहीन महतारी ल कॉंके पानी पीयाय के पहिली दू दिन लांघन रखे जाय त फेर तीसरइया दिन पीयाए जाय.. ए कॉंके म अद्भुत पुष्टई राहय, तेकर सेती छेवरहीन महतारी के देंह-पॉंंव ह जल्दी पहिली असन तंदुरुस्त हो जावय.
   -उरई ह अम्मर पौधा आय न संगी..ए ह कतकों सूखा जाय राहय फेर जब एमा थोरको पानी परथे त पुनर्जीवित हो जाथे.. अपन इही गुन के सेती एकर जड़ ले बने कॉंके ह छेवरहीन ल घलो पुनर्जीवित कर देवय.. हष्ट पुष्ट कर देवय, फेर अब तो हमर परंपरा मन के संग म प्रकृति ले मिलइया जीवन के अद्भुत अवसर घलो नंदावत जावत हे.
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-हमर इहाँ आज घलो कतकों लोगन हनुमान जी ल बेंदरा (बंदर) समझ जाथें जी भैरा, फेर मोला ए ह सही नइ जनावय.
   -बिल्कुल सही नोहय जी कोंदा.. उहू मन हमरे मन असन मानव ही रिहिन हें.. इहाँ के मूल निवासी समाज के मनखे रिहिन हें. 
   -हव महू ल अइसने जनाथे.. अब जइसे हमन इहाँ नाग या नागवंशी समाज के लोगन मनला जानथन नहीं.. ठउका वइसने.
   -हव इहू मन मूल निवासी समाज के लोगन आॅंय.. नाग या नागवंशी के मतलब सॉंप या सॉंप के वंशज नइ होवय, ठउका वइसने वानर कहे ले बेंदरा या बेंदरा मन के वंशज नइ होवय.
   -हव इही बात सही आय.. हमर इहाँ बिंझवार अउ संवरा जाति के मूल निवासी समाज वाले मनला बाली अउ ओकर भाई सुग्रीव के वंशज माने जाथे. बाली ले बिंझवार अउ सुग्रीव ले संवरा.. अउ हमन तो सब ए बात ल जानथन के बाली, सुग्रीव अउ हनुमान सबो एके प्रजाति के लोगन रिहिन हें... इहाँ के मूल निवासी समाज के लोगन रिहिन हें.
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-पहिली होरी तिहार ल मान के अंगना म सूते के जोखा मढ़ा देवत रेहेन तेकर सुरता हे नहीं जी भैरा? 
   -रइही कइसे नहीं जी कोंदा.. मैं तो तरिया पार के महादेव के मंदिर ऊपर छत म सूत जावत रेहेंव.. एक्के नींद म रतिहा पहावय.
   -हव जी फेर अब तो ए बड़े-बड़े फैक्टरी मन के चिमनी ले निकलत धुंगिया मन के मारे उसनत गरमी म घलो कुरिया भीतर छटपटावत सूते रेहे के मजबूरी होगे हे.
   -हव जी.. औद्योगीकरण के नॉव म प्रदूषण के दुकान खुलत हे चारों मुड़ा. न तो शुद्ध हवा मिल पावत हे अउ न शुद्ध पानी.
   -सही आय संगी.. हमर एती तो ए फैक्टरी मन म आने-आने देश राज ले आए लोगन मन सांस्कृतिक प्रदूषण घलो बगरावत हें. बेटी-बहू मन के कहूँ अकेल्ला दुकेल्ला अवई जवई ह अलहन बरोबर होगे हे.
   -हमर गाँव डहार के घलो इही च हाल हे.. औद्योगिक क्षेत्र बनाय के नॉव म गाँव गंवई के जम्मो चिन्हारी अउ संस्कार मिटावत हे.
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-होरी परब ह तो फागुन पुन्नी के दिन काम दहन या कहिन होलिका दहन के संग ही झर जाथे जी भैरा, फेर एला धूर पंचमी जेला रंग पंचमी घलो कहे जाथे, तक काबर मनाए जावत होही? 
   -अब अतका ल तो महूं ह फरी-फरा नइ जान पाए हौं जी कोंदा, फेर एक मान्यता इहू हवय के भगवान भोलेनाथ ह माता सती के मृत देंह ल ए दिन बनारस के मणिकर्णिका घाट म आगी दिए रिहिन हें, आउ फेर माता सती के चिता के राख ले होरी खेले रिहिन हें, एकरे सेती आज घलो ए मणिकर्णिका घाट म रंग पंचमी के दिन 'शिव जी के अड़भंगी होली' के सुरता म अइसने होरी खेले जाथे. इहाँ रंग गुलाल के नहीं, भलुक चिता के राख के होली खेलथें अउ गाथें-
खेले मसाने म होरी दिगंबर, खेले मसाने म होरी, 
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने म होरी
    -वाह भई.. मोला तो एकर गमे नइ रिहिसे.
   -हव.. एकरे सेती एला धूर पंचमी कहे जाथे.. हो सकथे अउ कोनो मन के अउ कुछू अलग मान्यता होही.
🌹
-इहाँ के मूलनिवासी गोंडीयन समुदाय के मन होली ल शिमगा/शिवमगवरा के रूप म मनाथें जी भैरा.
   -अच्छा.. ए शिवमगवरा का होथे जी कोंदा? 
   -गोण्डवाना धर्म एवं संस्कृति के तिरूमाल संतोष कुमार मरकाम के वाल म एक पोस्ट हे, ओकर मुताबिक शिवमगवरा माने होथे- 'शिव ले जाओ गौरा को'.
   -वाह भई..! 
   -संतोष मरकाम के पोस्ट के मुताबिक जब दक्ष के यज्ञ म पार्वती (पोस्ट म पार्वती ही लिखाय हे, सती नहीं) ल अग्नि कुंड म ढकेल दिए जाथे, त संभु के सेवक मन शिवमगवरा.. शिवमगवरा.. काहत दउंर परथें, अउ गवरा दाई के राख ल अपन माथा म लगाथें. एकर खबर मिले के बाद जब संभु ह क्रोधित होके आथे, त दक्ष के महल ल जला के राख कर देथे. ए किसम राजा दक्ष के महल के होली संभु ह जलाथे, एकरे सुरता म गोंडीयन समुदाय के मन शिमगा/शिवमगवरा परब मनाथें.
   -वाह भई.. परब तो हमन ल सब एकेच कस जनाथे, फेर सबके मान्यता अलग-अलग हे.
   -हव.. एकरे सेती तो इहाँ के संस्कृति अउ इतिहास मनला समझे म आम लोगन ल अकबकासी कस जनाथे.
🌹
-पहिली के चुनाव म मुहर-ठप्पा लगाय के नियम नइ रिहिसे जी भैरा.
   -त कइसन चुनाव होवय जी कोंदा? 
   -हमर देश के शुरूआती दू आम चुनाव म प्रत्याशी मन के नॉव अउ ओकर चुनाव चिन्ह के छप्पा लगे वाला अलग अलग मतपेटी रख दिए जावय. मतदाता ह अपन मतपत्र ल अपन पसंद के उम्मीदवार के मतपेटी म डार देवय.
   -अच्छा..! 
   -हव.. दू चुनाव के बाद जब मतपत्र म मुहर-ठप्पा लगाय के शुरुआत होइस, त कतकों झन तो ए नवा पद्धति के विरोध घलो करीन.
   -हाँ.. फेर अब तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आगे हवय ना.
   -हाँ सही आय.. अउ हो सकथे अवइया बेरा वोट डारे के अउ कुछू नवा आविष्कार हो सकथे, फेर शुरूआती दू चुनाव के ऐतिहासिक महत्व हे.. वो बखत के बिना मुहर-ठप्पा वाले मतदान ल "मुहर न ठप्पा, जीत गए क्का" वाले दौर कहिके आज तक सुरता करे जाथे.
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-अभी कतकों जगा ए देखे म आथे जी भैरा के होले डांड़ म माढ़े लकड़ी म एक माईलोगिन के पुतरी ल बइठार के पहिली ओकर पूजा करथें. पूजा करइया मन म माईलोगिन मन घलो रहिथें, अउ पूजा के पाछू फेर वोमा आगी ढीले गिस.
   -हव अइसन परंपरा ह शहरी क्षेत्र म वो जगा देखे ले मिलथे, जिहां आने देश राज ले आए लोगन मन एला मनाथें. हमर गंवई गाँव म जिहां आरुग छत्तीसगढ़िया पद्धति ले होले म आगी ढीले जाथे, उहाँ अइसन नइ होवय. हमर इहाँ तो होले डांड़ म माईलोगिन मन के जवई तक ह प्रतिबंधित रहिथे, होले म पुतरी बइठार के पूजा करई तो दुरिहा के बात आय. काबर ते इहाँ होले डांड़ म वासनात्मक गीत नृत्य के चलन हो जाथे, अइसन म माईलोगिन मन ल उहाँ कहाँ जावन दे जाही? 
   -हव सिरतोन आय जी.. तभे तो हमर बूढ़ी दाई ह पहिली कोनो लड़ई झगरा म अश्लील गढ़न के गारी गुप्तार करयं त वो मनला कहि देवय- तुंहर घर म दाई बहिनी नइए का तेमा ए जगा फुहर फुहर के होले बकत हौ? 
   -हां.. अब समझे डोकरी दाई ह अश्लील शब्द ल होले बकत हौ काबर काहय तेला? काबर ते इहाँ काम दहन के परब म अइसन शब्द गीत के चलन होय.
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-बस्तर बियर के नॉव ले प्रसिद्ध सल्फी के रस कभू पीए हावस नहीं जी भैरा? 
   -हाँ.. कतकों बेर पीए के जोंग जमे हे जी कोंदा.. सल्फी ल इहाँ के आदिवासी संस्कृति म पूजनीय पेड़ माने जाथे, अउ जब कोनो ल सल्फी पेड़ के पौधा भेंट करे जाथे, त जइसे हमन अपन बेटी के बिदागरी ल बाजा-गाजा के संग करथन नहीं, ठउका वइसने बाजा-गाजा संग सल्फी पौधा के बिदागरी करे जाथे.
   -हव सही आय.. एकरे सेती ए सल्फी के पेड़ म हर कोई ल चढ़ के वोकर रस निकाले के अनुमति नइ राहय. सल्फी पेड़ ले रस केवल उही मनखे ह निकाल सकथे, जेला वोकर पति के रूप म चिन्हारी दिए जाथे. मान्यता हे, के कहूँ दूसर मनखे ह सल्फी के पेड़ म चढ़ के रस निकाल दिही त सल्फी के पेड़ ह सूखा के मर जाथे.
   -हव जी जब बेटी के रूप म बिदागरी करे जाथे, त फेर वोमा ले रस निकाले के अनुमति हर कोई ल कइसे होही? ए बेटी बरोबर सल्फी के बिदागरी के परंपरा कोंडागांव, नारायणपुर, अंतागढ़ अउ फरसगांव आदि क्षेत्र म जादा देखे म आथे.
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-हमर इहाँ के कतकों गौरवशाली इतिहास के लेखन म अनदेखा करे गे हवय जी भैरा, जेकर सेती हम खुद आज अपन गौरव ले अनचिन्हार बने हावन.
   -हव जी कोंदा महूं तोर ए बात ले सहमत हौं.. अब देखना द्वापरयुग के वो गौरवशाली घटना ल जेमा धर्मराज युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के घोड़ा ल हमर बस्तर के राजकुमारी प्रमिला देवी ह छेंक के बाॅंध दे रिहिसे, अउ जब अर्जुन ह वो घोड़ा ल छोड़वाय बर आइस त प्रमिला देवी ह अर्जुन ल वोकर सेना सहित हरवा के वोकर अहंकार ल टोरे रिहिसे.
   -सही आय.. ए बात के जानकारी महूं ल मिले हे, तब बस्तर ल महाकांतार के नॉव के जाने जाय. वो बखत इहाँ स्त्री शासन रिहिसे, जेकर रानी रिहिसे प्रमिला देवी. 
   -हव जी.. हमर बस्तर के पुरखा साहित्यकार लाला जगदलपुरी ह अपन किताब म प्रमिला देवी के शौर्य गाथा के जबर उल्लेख करे हे. अब कमीश्नर कार्यालय जगदलपुर डहार ले प्रमिला देवी के प्रतिमा स्थापित करे के उदिम करे जावत हे.
    -ए तो बने बात आय.. हमला अपन गौरवशाली इतिहास मनला खोज खोज के निकाल के नवा पीढ़ी ले चिन्हारी करवाना चाही.
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-आजकाल लोगन अबड़ पूजा पाठ करथें.. कथा प्रवचन सुनथें, तभो कतकों किसम के लिगरी-लाई म परे रहिथें जी भैरा.
   -असली म लोगन धरम-करम के परिभाषा नइ समझंय जी कोंदा.
   -अच्छा.. अइसे हे का? 
   -हव.. धरम के मतलब मंदिर-मस्जिद म दिन-रात खुसरे राह, तिलक-टोपी खापे लोगन ल अपन धार्मिकता देखावत राह.. अइसन नइ होवय संगी.
   -अच्छा.. त फेर का होथे जी? 
   -इंसानियत के सच्चाई के साथ पालन करना होथे. अब देख स्वीडन नॉव के देश के 80 प्रतिशत लोगन नास्तिक हें, लेकिन ए अइसन देश आय जिहां अपराध के संख्या दुनिया म सबले कम हे.
   -अच्छा.. वाह भई? 
   -हव.. अउ एकर खातिर ओकर मन के धरम-करम ह नहीं, भलुक सच्चा इंसानियत ह असल कारण आय. मंदिर मस्जिद, पूजा उपासना सबो बने आय, फेर ए सबले पहिली इंसानियत के ठउर हे, अउ कहूँ इही ल छोड़ डारे त का बात के धरम अउ का बात के धार्मिक?
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Tuesday 26 March 2024

रंगमंच दिवस की शुभकामनाएँ.. गंवइहा

विश्व रंगमंच दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.. 
   रंगमंच पर अभिनय करने का वैसे मेरा कोई विशेष अनुभव नहीं है, फिर भी हमारे छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और नाटककार रहे स्व. टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी के द्वारा लिखित नाटक 'गंवइहा' में बाजार के एक दृश्य में मात्र एक मिनट के लिए मंच पर आने का संयोग है.
   राधेश्याम बघेल एवं राकेश चंद्रवंशी के कुशल निर्देशन में 1 जनवरी 1991 को रायपुर के रंगमंदिर के मंच पर प्रस्तुत किए गये 'गंवइहा' नाटक के सभी गीत मेरे द्वारा लिखे गये थे, जिसे ग्राम बोरिया के कलाकार मित्र गोविन्द धनगर, जगतराम यादव, खुमान साव आदि के साथ मिलकर संगीतबद्ध कर गायन भी किए थे.
    रंगमंदिर रायपुर में 1 जनवरी 91 को प्रस्तुत किये गए नाटक गंवइहा को अपार सफलता मिलने के कारण इसे उसी वर्ष भिलाई में आयोजित होने वाले 'लोक कला महोत्सव' में भी मंचित किया गया था.
   गंवइहा में मुख्य पात्र थे- राधेश्याम बघेल, विष्णुदत्त बघेल, पूरन सिंह बैस, हरिश सिंह, संदीप परगनिहा, इंद्रकुमार चंद्रवंशी, अमित बघेल, राकेश वर्मा, मंजू, अंजू टिकरिहा, रमादत्त जोशी, टाकेश्वरी परगनिहा एवं साधना महावादी सहित अनेक सहयोगी कलाकार और मित्र थे.
    आप सभी को आज विश्व रंगमंच दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.

Wednesday 13 March 2024

मृतात्मा के शांति बर उरई म पानी..

विचार//
मृतात्मा के शांति खातिर दस दिन ले उरई म काबर रितोथन पानी? 
    हमर छत्तीसगढ़ म तइहा बेरा ले ए परंपरा चले आवत हे, के जेन कोनो हमर लाग-मानी मन अपन नश्वर देंह के त्याग कर के अपन देवलोक के रद्दा चल देथें, वोला अंत्येष्टि या कहिन काठी के दिन ले दसगात्र तक रोज कोनो तरिया या नदिया म घाट बना के पॉंच पसर पानी जरूर देथन.
    ए परंपरा ह इहाँ के हर जाति समाज म देखे म आथे. जेन तरिया या नदिया म मृतात्मा ल पानी दे खातिर घाट बनाए जाथे, वोमा 'उरई' नामक एक जलीय पौधा ल गड़िया दिए जाथे, तहाँ ले वो जगा मृतात्मा खातिर एक ठन मुखारी मढ़ा दिए जाथे. जेन गाँव या घाट म उरई के पौधा नइ मिलय उहाँ दूबी ल गड़िया दिए जाथे, काबर ते दूबी ल घलो उरई बरोबर अम्मर माने जाथे, फेर उरई ल प्राथमिकता दिए जाथे. 
   हमर जिनगी म जनम ले मरण तक कतकों नेंग-जोग अउ रीति-रिवाज हे, जेला हमन पुरखौती बेरा ल पूरा निष्ठा अउ नियम के साथ मनावत आवत हावन. आप सब जानथौ के हमर छत्तीसगढ़ ह मूल रूप ले प्रकृति के उपासक समाज आय. एकरे सेती हमर इहाँ प्रकृति ले जुड़े हर जिनिस, जइसे जीव-जंतु, रुख-राई, कांदी-कुसा आदि सबोच ल इहाँ के नेंग-जोग अउ रीति-रिवाज म संघारे गे हावय.
   नदिया, नरवा, तरिया, ढोड़गा जम्मोच पानी के तीर म पाए जाने वाला जलीय पौधा 'उरई' घलो अइसने एक प्राकृतिक जिनिस आय, जे ह कभू मरबे नइ करय, माने एक किसम ले अम्मर होथे. ए उरई ह कतकों खड़खड़ ले सूखा जाय राहय, फेर जब कभू थोर-बहुत पानी मिल जाथे, तहाँ ले फेर हरिया के मुस्काए लगथे. माने वापिस पुनर्जीवित हो जाथे.
    हमन तइहा बेरा ले सुनत अउ पढ़त आवत हावन के आत्मा रूपी जीव ह कभू मरय नहीं, मरथे कहूँ त ए पॉंच तत्व ले बने शरीर ह. एकरे सेती एला आत्मा के शरीर बदलना घलो कहे जाथे. कहे जाथे के आत्मा ह जर्जर होवत शरीर ल बदल के दूसर नवा शरीर म प्रवेश कर जाथे. इहू मान्यता हावय के वो आत्मा ह अपन तात्कालिक देंह के माध्यम ले करे गे कर्म के मुताबिक कोनो आने चोला धारण करथे या फेर मोक्ष या सद्गति के प्रक्रिया म कोनो देवमंडल म थिरावत रहिथे, आनंद भोगत रहिथे.
   एकरे सेती जब वो ह अपन तात्कालिक देंह के त्याग करथे, तब हम सब ओकर सगा-संबंधी मन कोनो तरिया या नदिया म घाट बना के दस दिन ले ओकर नॉव म नाहवन नहाथन अउ उरई खोंच के तिलि जवां संग पॉंच पसर पानी देथन, अउ मने मन अरजी करथन के हे पुण्य कर्म करने वाला आत्मा जा  तुंहला शांति मिलय, जेन कोनो योनि म या देवजगत म ठउर पावस, उहाँ इही उरई के पौधा बरोबर सुघ्घर हरियर मुस्कावत राहस, अम्मर राहस.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811